वर्ष २०१७ की शुरुआत बहुत ही अच्छी हुई।खास कर के २६ जनवरी से शुरू होनेवाली मेरी बाईक राईड तो यह जरूर प्रतीत कर रही थी।इस समय मैं मध्यप्रदेश स्थित ज्योतिर्लिंग यात्रा पर निकल पड़ा था। हमेशा की तरह प्रातः ४ बजे मैं अपने घर से निकलकर अपने जीवन मार्गदर्शक डॉ अनिरुद्ध जोशी (बापू) इन्होंने मुंबई के "खार" यहाँ स्थापन किये "श्री गुरुक्षेत्रम" का दर्शन लिया।

"श्री गुरुक्षेत्रम" हमेशा से हम सभी श्रद्धावानों के लिए सदैव और इकमात्र आधारस्थान है।इस का दर्शन लेकर अब तक मैं भारतभर मे अकेला बाईक राईड पर निकलता हूँ।एकदम निश्चिंत होकर, पुरे विश्वास से फिर वह लद्दाख का सफर हो या स्पीति वैली हो।हमारे बापू हमेशा कहते रहते है "केवल इक विश्वास चाहिये, फिर आपके गुरु आपके पालनहार हो जाते है " इस बात को हमेशा ध्यान में रखकर, हम जैसे कई श्रद्धावान जीवन की कई कठिनायों का सहज सामना कर विजय पाते है।मैंने NH-52 से नाशिक तक का सफर सिर्फ १० बजे के पहले ही तय कर लिया था।


इसके आगे महाराष्ट्र के रस्ते पर मैं पहली बार सफर कर रहा था। मुंबई के अलावा महाराष्ट्र के अन्य जिल्हों तक जानेवाली बहुतसी सड़के मैंने काफी सुस्थिति में पायी है। और नाशिकसे आगे धुले तक की सड़क मुझे अपनी मंजिल का लुफ्त उठाने में काफी सक्रीय पायी। मानो किसीने मेरे आने की ख़ुशी में गलीचा बिछाया हो।



अनजाने रास्तों की एक बात मुझे विशेष रूप से आकर्षित करती है। उस पर मिलने वाले गाँव , काफी नए और उनके नाम भी ऐसे की आप कभी भूल नहीं सकते। धुले से आगे काफी अलग गाँवों के नाम मिले थे जैसे "नरडाणा , सोनगीर ,सेंधवा ,धामनोद "। धामनोद से मुझे दाए मुड़ना था। अब तक सिर्फ हाइवे चला कर, मुझे और मेरे वॉरहॉर्स को काफी थकान सी महसूस हो रही थी। लगभग ५०० किमी का अंतर पार हो चूका था। शाम के ५ बज चुके थे। थोडीही दुरी पर में इक नदी का विशाल पात्र देख रहा था। वॉरहॉर्स (बाइक) ७० की स्पीड पर रहेगा, और इतने में इक बोर्ड आँखों के सामने से इतनी जल्द निकला, की मैं वहाँ रुक कर फोटो खींचने का विचार करने तक २०-३० मीटर आगे आ पहुंचा। उस बोर्ड पर लिखा था "नर्मदा "। कहने के लिए सिर्फ तीन अक्षर, पर उसकी गहराई मानवी परिमाणों से परे थी।






अतः श्रद्धालु एवं दर्शनार्थी भगवान् ओंकारेश्वर के शयन दर्शन अवश्य करे। यदि श्रद्धालु एवं दर्शनार्थी अपने शुभ प्रसंगों के अवसर पर विशेष श्रृंगार कराना चाहते है तो मंदिर कार्यालय में संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते है।उस रात सिर्फ ५० -६० भाविकों की भीड़ थी। आरती पूरी होने तक १०० - १२५ तक लोग जमा हो गए थे। इक जगह बच्चों को कंधों पर उठाये उनके पिता अपने बच्चोंके मन में भगवान् शिवजी के प्रति भक्ति के बीज बोते हुए पाए, तो दूसरी ओर अपने बूढ़े माँ-पिता को शिवजी मंदिर की सीढियाँ चढ़ाते हुए बेटे, अपने मातृ-पितृ ऋण को चूकाते पाए।
रात को नर्मदाजी का दर्शन ठीक तरह से कर नहीं पाया इस कारण प्रातः जल्द उठकर वापिस "श्री ओंकारेश्वरजी "के दर्शन और तत्पश्चात नर्मदाजी के भी दर्शन करने की मनीषा से होटल आ पहुँचा।
बाइक राइड पर मेरा इक नियम है, शरीर के रईसी ठाटबाठ को बिलकुल स्थान नहीं। जो भी मिला उसे सही मानकर अपनाना यह मेरे बाइक राइड की ख़ास बात है। महाराष्ट्र में कई सालोंसे प्रचलित पंढ़रपुर वारी(यात्रा) का बड़ा प्रभाव और असर मेरी बाइक राइड पर है। सुबह सात बजह से पहले मंदिर पहुंचना था। इसलिए सुबह ठीक ६ बजे उठकर , शुचिर्भूत होकर में मंदिर पहुंचा। शिवजी को बेल,फूल और नर्मदा जल से अभिषेक कराकर मैं नर्मदा तट पर पहुंचा।




दिप प्रज्वलित कर नर्मदाजीको प्रणाम कर मैं भगवान् ममलेश्वर के दर्शन हेतु घाटी चढ़ने लगा। ओंकारेश्वर और ममलेश्वर यह दोनों एक ही ज्योतिर्लिंग है , इस बारे में शिवपुराण में विस्तृत कथा पायी जाती है। एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रणव के अन्तर्गत जो सदाशिव विद्यमान हुए, उन्हें ‘ओंकार’ नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, वह ‘परमेश्वर लिंग’ के नाम से विख्यात हुई। परमेश्वर लिंग को ही ‘अमलेश्वर’ (ममलेश्वर)भी कहा जाता है। इस प्रकार भक्तजनों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाले ‘ओंकारेश्वर’ और ‘परमेश्वर’ नाम से शिव के ये ज्योतिर्लिंग जगत में प्रसिद्ध हुए। इन दोनों के बीच नर्मदा जी बहती है। नर्मदाजी के उत्तर में ओंकारेश्वरजी बसे है तो दक्षिणी तट पर ममलेश्वरजी।


घाटी चढ़कर उपर की तरफ ममलेश्वरजी का मंदिर है। घाटी के दोनों तरफ बिल्वपत्र , फूल, चढ़ावा से सजी दुकानों की भागदौड देखते ही बनती है। ममलेश्वर यह मंदिर काफी पुरातन है। ममलेश्वर मंदिर ज्यादा बड़ा मंदिर नहीं है। भगवान शिव, शिवलिंग रूप में पवित्र स्थान के केंद्र में मौजूद है। ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग में आप खुद के द्वारा शिवलिंग को अभिषेकं कर सकते हैं और छू सकते हैं । यहाँ कोई रोकथाम नहीं है। और श्रद्धालु इसका पूरा लाभ उठा रहे थे। मैं इसके लिए अपवाद नहीं था।

अगले भाग में जानेंगे भगवान् श्री महाकालेश्वर जी के और उज्जैन की कुछ खास बातें।आगे की यात्रा उज्जैन स्थित महाकालेश्वर के बारे में
ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में कुछ उपयुक्त जानकारी :
मंदिर खुलने का समय:
प्रातः काल ५ बजे - मंगला आरती एवं नैवेध्य भोगप्रातः कल ५:३० बजे – दर्शन प्रारंभ
मध्यान्ह कालीन भोग:
दोपहर १२:२० से १:१० बजे – मध्यान्ह भोगदोपहर १:१५ बजे से – पुनः दर्शन प्रारंभसायंकालीन दर्शन:
दोपहर ४ बजे से – भगवान् के दर्शन(बिल्वपत्र, फूल, नारियल इत्यादि पूजन सामग्री गर्भगृह में ले जाना ४ बजे बाद प्रतिबंधित है|)
शयन आरती:
रात्रि ८:३० से ९:०० बजे – शयन आरतीरात्रि ९:०० से ९:३५ बजे – भगवान् के शयन दर्शन
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