Tuesday 10 July 2018

ज्योतिर्लिंग बाईक यात्रा २०१७ -२


गतः ब्लॉगपोस्ट के माध्यमसे मैंने आपके सामने नर्मदास्थित ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रस्तुति की थी।  इस पोस्ट में आइए देखते है मेरा अगला सफर भगवान महाकालेश्वर जी का। सुबह का दर्शन और नर्मदा तट पर बिछाया हर एक पल मन में समाए वहाँ से निकलना काफी कठीन हो बैठा था।  मात्र भगवान महाकालेश्वर जी के दर्शन की आस मुझे वहाँ से निकलने की अनुमती देने मे सक्रीय हो बैठी।  ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर का फासला केवल १३९ किमी का है।  यानी ज्यादा से ज्यादा घंटो का बाइक सफर। 
ओंकारेश्वरसे निकलते ही कुछ दुरी पर मोरटक्का के पहले खेतों के बीचसे गुजरता हुआ रास्ता है।  यहाँ पर फोटो लेने की मेरी इच्छा ने अपना पहला स्टॉप कायम किया।  



१० एक मिनीट तक वहाँ समय बिताने के बाद मैं निकल पड़ा। मैं थोडासा अस्वस्थ महसूस करने लगा था ,हेलमेट के अंदर एक नुकीली चींज मेरे सर पर तीक्ष्ण वार कर रही थी।  बाइक रोकने की मुझे बिलकुल मनीषा नहीं थी। इसलिए बार बार मैं अपने हेलमेट को ठीक कर रहा था। पर मेरा प्रयास व्यर्थ था। आगे बड़वाह मोड़ पर मैंने अपनी बाइक रोक दी हेलमेट उतार कर मैंने अंदर एक विशेष प्रजाति की मक्खी को पाया।  जब मैं खेतों के यहाँ फोटो खिंचवा रहा था शायद उसी वक्त यह मक्खी अंदर घुस गयी होगी। 



इस वक्त मुझे मेरे जीवन मार्गदर्शक गुरु डॉ अनिरुद्धजी के बातों का सुमिरन हुआ।  जब हम भगवान् से मिलने निकलते है , तब मन में अनेक प्र्श्न,किन्तु लिए निकलते है।  यह प्रश्न / किन्तु भगवान् की ओर का हमारा सफर मुश्किल कैसे हो इसी बात का काम करते है।  जिस तरह उस मक्खी के कारण मैं अपने बाइक राइड का आनंद नही ले पा रहा था उसी तरह यह प्रश्न/ किन्तु हमें अपने भक्ति यात्रा का आनंद लेने में अवरोध करते है। 

पर क्या कारण था उस मक्खी के मेरे हेलमेट में आने का ? स्वाभाविकतः से जब मैंने महाकालेश्वर जी के ओर बढ़ने के बजाय अपना ध्यान रास्ते में आनेवाली मनलुभावन चीजों में लगाया, उसी वक्त मैंने अपने लक्ष्य से मुँह मोड़ लिया और अपना सफरभी मुश्किल कर दिया। जिस तरह सफर के एक मोड़ पर मैंने हेलमेट निकाल कर उस मक्खी को ढूंढ निकला, उसी तरह जीवन के एक मोड़ पर जरुरत होती मन / बुद्धि में पैदा होने वाले प्रश्न / किन्तुओं को खोजने कि और उन्हें दूर करने की।  और आगे अब अपना मन कही भी भटकने की दृढ़ इच्छाशक्ति की।  इस के आगे अब मेरा अगला पड़ाव सीधा महाकालेश्वर में ही होगा यह बात थान कर में वहाँ से निकल पड़ा। 

तक़रीबन बजह तक मैं उज्जैन स्थित महाकेलश्वरजी के मंदिर पहुँच गया था।  

तुरंत ही एक होटल में रूम बुक करवाके में मंदिर परिसर घूमने निकल पड़ा।  भीड़ को देख मैंने शाम को आराम से दर्शन लेने का विचार पक्का किया।  वहाँ पर एक काउंटर पर  थोडीसी भीड़ देखी। पूछताछ करने पर पता चला की वह तो भस्मारती की लाइन है।  सिर्फ कुछ नंबर ही बाकी थे। मैंने अपने आराध्य, मेरे सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी को मन से गुहार लगाईं।  केवल आधे घंटे के अवधि में मेरे हाट में भस्मारती की पर्ची देख मेरा अपने आप पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।  



आज तक भस्मारती के बारे में केवल सुना था और आज उसका अनुभव मिलने की ख़ुशी को शब्दोंमें बंद करना मुश्किल है। 

भस्मारती के सामन जैसे की धोती , पानी का कलश इत्यादि की सुविधा होटल मालिक ने पूरी कर दी थी। भस्मारती के लिए रात १२ बजह से लाइन लगती है।  कल दूसरे दिन वापिस मुझे मुंबई की और निकलना था। अगर अब विश्राम ले लूंगा तो अन्य मंदिरोंका दर्शन नहीं हो पाएगा। इसलिए उज्जैनस्थित अन्य मंदिरोंका दर्शन लेने मैं निकल पड़ा। कुछ - घंटो में मैंने मंगलनाथ मंदिर , श्री कालभैरवजी का मंदिर और महर्षि सांदीपनीजी के आश्रम का दर्शन लिया।  स्वयं भगवानने  भी पृथ्वी पर आने के बाद बिना गुरु के जीवन  नहीं बिताया।  इस बात की पुष्टि सांदीपनि आश्रम में जाने के बाद होती है।



मध्यप्रदेश के खाने की विशेषतः इंदौर - उज्जैन की बातों का जिक्र हमेशा सुना था।  आज उसका आस्वाद लेने का समय था।  उज्जैन मालवा रीजन में आता है और यहाँ के खाने की अपने आप में एक विशेषतः है।  इसलिए मैंने मालवा की बहार नाम थाली को पसंद करना जरुरी समझा।  बहुतही रोचक और मजेदार खाना मैंने खाया।  


तत्पश्चात जलेबी और बादाम दूध का आनंद अविस्मरणीय था।




थोडासा आराम कर देर रात, मैं भस्मारती के लिए निकल पड़ा।  


मेरे आगे पुना में कार्यरत अविषेक देसरकार जी से मेरा परिचय हो गया। पूना में एक आईटी कंपनी में काम करने वाले युवक का ज्योतिर्लिंगों के प्रति का ग्यान और आस्था देखते बनती है।  समवयस्क होने के कारण जल्द ही हमारी दोस्ती हो गयी। 


धीरे धीरे रात आगे बढ़ रही थी और हमारी बाते भी , इन बातों दरमियान मेरी गर्भगृह में पहुँचने की मनीषा अधिक तीव्र होने लगी।  शुरवाती दौर मे मैं वक्त कैसे कटेगा इस चिंता से व्यथित था।  परंतु लाईन में मिले भविकोंकी बातोंमे वक्त का अंदाजा ही नहीं लगा।  


थोडीही देर में हमें गर्भगृह मे जल चढाने हेतु आगे बढ़ने का इशारा हुआ। उस वक्त मैं महकालजी पर जलाभिषेक कर रहा था पर सच कहता हूँ दोस्तों  वक्त में शिवजी के प्यार से पूरा भीग चूका था। 

वहाँ से आगे महकालजी के सामने बने हॉल में जाने की सुविधा थी।   सभी भक्तगण वही डेरा जमाये बैठ रहे थे। थोड़ेही देर में महकालजी की भस्मारती शुरू हो गयी।  यह भस्मारती मंत्रमुग्ध करने वाली हैं।  मन ही मन मैंने अपने गुरु श्री अनिरुद्धजी का सुमिरन चालू किया। आज उनके आशीर्वाद के कारण ही मैं यहाँ सब अनुभव कर पा रहा था। 


उसी वक्त  मेरे सद्गुरु पृरस्कृत भजन क्लास मे सीखा हुआ एक भजन मन ही  मन चालू हो गया



गुरु बिन कौन बतावे बाट बड़ा विकिट यम घाट
भ्रान्ति की पहाड़ी, नदिया बीच में अहंकार की लाट
बड़ा विकिट यम घाट

काम क्रोध दो पर्वत ठाड़े, लोभ चोर संघात
बड़ा विकिट यम घाट
मद मक्षर का मेधा बरसत माया पवन बह जाए
बड़ा विकिट यम घाट
कहत कबीर सुनो भाई साधो, क्यों तरना यह घाट
बड़ा विकिट यम घाट  


जीवन मे गुरु का महत्त्व बहुत ही बड़ा है और केवल मेरे गुरु श्री अनिरुद्धजी के आशीर्वाद से ही मैं पुरे भारतभर अकेले ही बाइक से यात्रा कर पाता हूँ।  नाही केवल बाइक यात्रा परंतु भस्मारती जैसे पावन अनुभव को पाना भी उनकी ही योजना है, इस बात पर मेरा पूरा विश्वास है।  आज तक मैंने जिस जिस राह पर निकल पड़ा हूँ , मेरे भगवान , मेरे गुरु , मेरे दोस्त , मेरे पिता मेरे प्यारे अनिरुद्ध हमेशा प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष रूप से मेरे साथ चलते है।  और इसी कारण अनेक बिकट समय , कठिन परिस्थियोंसे में हमेशा सही सलामत आगे बढ़ता हूँ।  और यही मेरा विश्वास मुझे अपना जीवन आनंद से जीने का अवसर देता है।